स्वामी प्रसाद मौर्या तथा ओमप्रकाश राजभर जैसे ब्लैकमेलरों की जरुरत नहीं है भाजपा को

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स्वामी प्रसाद मौर्या तथा ओमप्रकाश राजभर जैसे ब्लैकमेलरों की जरुरत नहीं है भाजपा को


−     परिवारवादी तथा अवसरवादी कभी किसी दल के नहीं बल्कि परिवार के होते हैं
−     बेटा, बेटी, दामाद तथा रिश्तेदारों का कैरियर बनाने का कारखाना नहीं है भाजपा

अरुण सिंह।
भाजपा की बदौलत परिवारवादी पार्टी के दिग्गज प्रत्याशी को हराकर अपनी बेटी को सांसद बनाया, अपने निकम्मे तथा नकारा बेटे को पार्टी का टिकट दिलाकर पार्टी की एक सीट गंवायी। अब बेटे दामाद तथा रिश्तेदारों के लिए भी टिकट चाहिए। 5 साल तक सत्ता की मलाइ काटी तथा अन्तिम समय में पार्टी का टिकट बेचने का मौका नहीं मिला तो रुखसत हो लिए। इस तरह के ब्लैकमेलरों की भाजपा में जरुरत नहीं है। 1 दिन पहले भाजपा का गुणगान करने वाला आज किस मुंह से भाजपा छोड़कर चला गया, यही नही पांच मिनट में उसको लपक भी लिया गया। एक परिवारवादी को दूसरे परिवारवादी ने लपक लिया।

भाजपा को इस तरह के आदमी के जाने का कोइ शोक नहीं करना चाहिए .....। एक कहावत तो सुनी ही होगी कि .. जैसे कन्ता घर रहे वैसे रहे विदेश ( निकम्मे आदमी के घर रहने से न तो कोई लाभ होता है और न बाहर रहने से कोई हानि होती है)...  इसी कहावत को ध्यान में रखना जरुरी है। साथ में यह भी ध्यान रखना होगा कि....     पानी में पानी मिले, मिले कीच में कीच । जैसे को तैसा मिले, मिले नीच में नीच।.. इस कहावत को मिले सोम को सोम... से भी समझा जा सकता है। भाजपा ने जो किया वह जनता भली भांति जानती है। वह यह भी जानती है कि कहां उसका भला है, तथा कहां है। ऐसे ब्लैकमेलर तमाम आए और चले गए । भाजपा निरन्‍तर बढती जा रही है ।

ओमप्रकाश  राजभर भी एक ब्लैकमेलर था जिसने पार्टी से नाता पहले ही तोड़ लिया। उसके भी बेटे को एमएलसी तथा उसको मन्त्री बनना था। ब्लैकमेलरों की पहचान नियत समय पर होती है। जनता स्वामी प्रसाद मौर्या की हकीकत बखूबी जानती है। सपा के विधायक मनोज पाण्डेय से वह अपने निकम्मे बेटे को जिता नहीं पाया तो उसने अब दूसरा रास्ता अपनाया है। वह यह की सपा अपने जीते हुए विधायक मनोज पांडेय को टिकट न देकर उसके बेटे को दे देगी। जब यह होगा तो मनोज पांडेय आखिर क्या करेंगे......।

परिवारवादियों ने उत्तर प्रदेश की जनता को चूतिया समझ लिया है शायद..। जनता समझदार हो चुकी है परिवारवादियों। इसी चुनाव में वह ब्लैकमेलरों तथा परिवारवादियों को सबक वह सबक सिखाएगी कि वह जीवन भर याद रखेंगे। देखते जाइए क्या होता है... जनता तेल तथा तेल की धार दोनों ही देख रही है।

इसे लगता है कि भाजपा हार रही है...

एक कहावत है कि जब जहाज डगमगाता है तो सबसे पहले चूहे वहां से भागते हैं। लेकिन विराट जहाज जब तूफानों का सामना करते हुए फिर स्थिर हो जाता है तब यही चूहे उसकी तरफ लपकते तो जरुर हैं लेकिन जहाज दूर जा चुका होता है। इसी तरह का चूहा स्वामी प्रसाद मौर्या है। उसने बड़ी बड़ी रैलियां देखीं तो उसे लगा कि जो दिख रहा है वही सही है। नतीजा यह हुआ कि उसने लगातार 5 साल सत्ता सुख भोगने के बाद पार्टी का त्याग कर दिया।

अभी कइ ब्लैकमेलर बचे हैं पार्टी में ...

पार्टी से कइ ब्लैकमेलर एक एक करके बाहर हो गए, लेकिन अभी एक ब्लैकमेलर पार्टी में बचा हुआ है। अपनी जाति के वोटरों की बदौलत उसे पूरे परिवार का कैरियर जो सुधारना है। अपनी जाति के वोटों को बेच रहा है। उसे बेटे को सांसद बनाना है, दूसरे बेटे को विधायक बनाना है, भाइ को एमएलसी बनाना है, पतोहू को भी चुनाव में उतारना है। इस ब्लैकमेलर से भाजपा को कब निजात मिलेगी यह तो आने वाला समय ही बताएगा, लेकिन जरुरत इस बात की है कि इसकी काट तैयार करके इसको सबक सिखाना होगा। यही नहीं ब्लैकमेलर आंटी को भी ध्यान देना होगा। उनके भी पति तथा कुछ रिश्तेदारों को विधायक जो बनना है।

और अन्त में.....

एक शायर का शेर है..

इलाजे दर्दे दिल तुमसे मसीहा हो नहीं सकता,
तुम अच्छा कर नहीं सकते, मैं अच्छा हो नहीं सकता।
तुम्हें चाहूं, तुम्हारे चाहने वालों को भी चाहूं,
मेरा दिल फेर दो, मुझसे ये सौदा हो नहीं सकता।


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